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जीते हैं कैसे ऐसी मिसालों को देखिए - अज़ीज़ लखनवी कविता - Darsaal

जीते हैं कैसे ऐसी मिसालों को देखिए

जीते हैं कैसे ऐसी मिसालों को देखिए

पर्दा उठा के चाहने वालों को देखिए

क्या दिल जिगर है चाहने वालों को देखिए

मेरे सुकूत अपने सवालों को देखिए

अब भी हैं ऐसे लोग कि जिन से सबक़ मिले

दिल मुर्दा है तो ज़िंदा मिसालों को देखिए

क्या देखते हैं आप बहार-ए-नुमू अभी

जब एड़ियाँ तक आएँ तो बालों को देखिए

तबक़े ज़मीन के हों कि औराक़-ए-आसमाँ

क़ुदरत के दिल-फ़रेब रिसालों को देखिए

हिम्मत को देखिए कि वही मर्द-ए-कार है

फ़ौजों को देखिए न रिसालों को देखिए

तक़लीद क्यूँ ख़याल-ओ-ज़बाँ में किसी की हो

अपने ख़याल अपने मक़ालों को देखिए

दुश्मन पे भी निगाह रहे ऐब में है वो

ये क्या कि सिर्फ़ चाहने वालों को देखिए

हो सरसरी न गोर-ए-ग़रीबाँ पे इक नज़र

उन के दिमाग़ उन के ख़यालों को देखिए

साक़ी की चश्म-ए-मस्त का नज़्ज़ारा कीजिए

सहबा को देखिए न पियालों को देखिए

दिल देखिए कि तकमिला‌‌‌‌-ए-शौक़ हो 'अज़ीज़'

मस्जिद को देखिए न शिवालों को देखिए

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