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दुनिया को वलवला दिल-ए-नाशाद से हुआ - अज़ीज़ लखनवी कविता - Darsaal

दुनिया को वलवला दिल-ए-नाशाद से हुआ

दुनिया को वलवला दिल-ए-नाशाद से हुआ

ये तूल उस खुलासा-ए-ईजाद से हुआ

फ़स्ल-ए-जुनूँ में सीना-ओ-नाख़ुन को मेरे देख

क्या बे-सुतूँ पे तेशा-फ़रहाद से हुआ

रहमत ने बढ़ के सर्द जहन्नम को कर दिया

कैसा क़ुसूर ये दिल-ए-नाशाद से हुआ

ख़ुश हूँ मैं वक़्त-ए-नज़अ' ख़ुशा लज़्ज़त-ए-फ़राग़

जो कुछ हुआ वो आप के इरशाद से हुआ

ये है हक़ीक़त-ए-अदम-ओ-आलम-ए-वुजूद

वो ख़ामुशी से ये मिरी फ़रियाद से हुआ

ना-वाक़िफ़-ए-रुसूम मोहब्बत है कोई चीज़

इंसाँ 'अज़ीज़' शेवा-ए-फ़र्याद से हुआ

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