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दिल हमारा है कि हम माइल-ए-फ़रियाद नहीं - अज़ीज़ लखनवी कविता - Darsaal

दिल हमारा है कि हम माइल-ए-फ़रियाद नहीं

दिल हमारा है कि हम माइल-ए-फ़रियाद नहीं

वर्ना क्या ज़ुल्म नहीं कौन सी बेदाद नहीं

हुस्न इक शान-ए-इलाही है मगर ऐ बे-मेहर

बेवफ़ाई तो कोई हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद नहीं

सर-ए-तुर्बत वो ख़मोशी पे मिरी कहते हैं

मरने वाले तुझे पैमान-ए-वफ़ा याद नहीं

हुस्न-ए-आरास्ता क़ुदरत का अतिय्या है मगर

क्या मिरा इश्क़-ए-जिगर-सोज़ ख़ुदा-दाद नहीं

लाख पाबंद-ए-अलाएक न रहे कोई यहाँ

तब-ए-वारस्ता मगर फ़िक्र से आज़ाद नहीं

बाहम आईन-ए-वफ़ा रस्म-ए-मोहब्बत कैसी

वक़्त अब वो है कि बंदों को ख़ुदा याद नहीं

चश्म-ए-मख़मूर वो है काबिल-ए-ग़र्क़-ए-मय-ए-नाब

दफ़्तर-ए-इश्क़ पे जब तक कि मिरे साद नहीं

पूछते क्या हो तबाही का फ़साना मुझ से

दिल-ए-बर्बाद की सूरत भी मुझे याद नहीं

ज़र्रे ज़र्रे में है इक आलम-ए-म'नी पिन्हाँ

ख़ाक-ए-बर्बाद को समझे हो कि आबाद नहीं

आप कहते हैं कि है गोर-ए-ग़रीबाँ वीराँ

ऐसी बस्ती तो जहाँ में कोई आबाद नहीं

आँसुओं को भी ज़रा देख ले रोने वाले

इन सितारों में तो दुनिया कोई आबाद नहीं

हुस्न-ए-ख़ुद मैं ने किए आइने के सौ टुकड़े

अब न कहना कि निगाहें सितम-ईजाद नहीं

कब ख़यालात पे मुमकिन है किसी का पहरा

दिल तो आज़ाद रहा मैं अगर आज़ाद नहीं

सीना-कावी के लिए शर्त है दिल की हिम्मत

नाख़ुन-ए-दस्त-ए-जुनूँ तेशा-ए-फ़रहाद नहीं

बे-ख़ुदी मंज़िल-ए-इरफ़ाँ है ज़रा होश में आ

है ख़ुदी का ये नतीजा कि ख़ुदा याद नहीं

तबक़ा-ए-ख़ाक में है आलम-ए-ख़ामोश-आबाद

जिस को बर्बाद समझते हो वो बर्बाद नहीं

दिल-ए-वीराँ की तबाही की कोई हद है 'अज़ीज़'

मैं समझता हूँ कि दुनिया अभी आबाद नहीं

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