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नाज़नीनान-ए-जहाँ शोबदा-गर पक्के हैं - अज़ीज़ हैदराबादी कविता - Darsaal

नाज़नीनान-ए-जहाँ शोबदा-गर पक्के हैं

नाज़नीनान-ए-जहाँ शोबदा-गर पक्के हैं

देखने को तो ये भोले हैं मगर पक्के हैं

हम लुटा देंगे मोहब्बत में मता-ए-हस्ती

हम दिखा देंगे इरादे के अगर पक्के हैं

पुख़्ता-कारी की ख़बर देती है ख़ामी उन की

कान के कच्चे हैं मतलब के मगर पक्के हैं

ये तो फ़रमाइए क़समों की ज़रूरत क्या थी

आप इक़रार के वादे के अगर पक्के हैं

ख़ौफ़ तूफ़ान-ए-हवादिस का नहीं मुझ को 'अज़ीज़'

जिन की बुनियाद है मज़बूत वो घर पक्के हैं

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