नारा-ए-तकबीर भी ज़ाहिद निसार-ए-नग़मा है
नारा-ए-तकबीर भी ज़ाहिद निसार-ए-नग़मा है
किस क़दर अल्लाहु-अकबर ए'तिबार-ए-नग़्मा है
क्या सुरीली थी सदा-ए-हर्फ़-ए-कुन रोज़-ए-अज़ल
अब तक रग रग हमारी बे-क़रार-ए-नग़्मा है
अंदलीब-ए-ख़ुश-नवा पर आँख है सय्याद की
नर्गिस-ए-शहला सरापा इंतिज़ार-ए-नग़्मा है
तफ़रक़ा हो इस तरह तो क्या जमे इशरत का रंग
दिल ज़ईफ़-ओ-नातवाँ लब ज़ेर-ए-बार-ए-नग़्मा है
शेर दो हैं हज़रत-ए-ग़ालिब के दीवाँ में 'अज़ीज़'
ये ग़ज़ल मेरी उसी मय का ख़ुमार-ए-नग़्मा है
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