काज़िब सहाफ़तों की बुझी राख के तले
झुलसा हुआ मिलेगा वरक़-दर-वरक़ अदब
Anwar Masood
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Wasi Shah
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Jaun Eliya
Rahat Indori
Gulzar
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मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर
आतिश-ए-मीना नज़र आई हरीफ़ाना मुझे
ग़लत-बयाँ ये फ़ज़ा महर ओ कीं दरोग़ दरोग़
कुछ अब के हम भी कहें उस की दास्तान-ए-विसाल
जूयान-ए-ताज़ा-कारी-ए-गुफ़्तार कुछ कहो
ज़ंजीर-ए-पा से आहन-ए-शमशीर है तलब
ताज़ा हवा बहार की दिल का मलाल ले गई
नरमी हवा की मौज-ए-तरब-ख़ेज़ अभी से है
शहर जिन के नाम से ज़िंदा था वो सब उठ गए
हज़ार वक़्त के परतव-नज़र में होते हैं
मेरी वफ़ा है उस की उदासी का एक बाब