Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_703d1a6324c449ef37482f9bacc3c8e9, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
सलीब ओ दार के क़िस्से रक़म होते ही रहते हैं - अज़ीज़ हामिद मदनी कविता - Darsaal

सलीब ओ दार के क़िस्से रक़म होते ही रहते हैं

सलीब ओ दार के क़िस्से रक़म होते ही रहते हैं

क़लम की जुम्बिशों पर सर क़लम होते ही रहते हैं

ये शाख़-ए-गुल है आईन-ए-नुमू से आप वाक़िफ़ हैं

समझती है कि मौसम के सितम होते ही रहते हैं

कभी तेरी कभी दस्त-ए-जुनूँ की बात चलती है

ये अफ़्साने तो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म होते ही रहते हैं

तवज्जोह उन की अब ऐ साकिनान-ए-शहर तुम पर है

हम ऐसों पर बहुत उन के करम होते ही रहते हैं

तिरे बंद-ए-क़बा से रिश्ता-ए-अनफ़ास-ए-दौराँ तक

कुछ उक़्दे नाख़ुनों को भी बहम होते ही रहते हैं

हुजूम-ए-लाला-ओ-नसरीं हो या लब-हा-ए-शीरीं हों

मिरी मौज-ए-नफ़स से ताज़ा-दम होते ही रहते हैं

मिरा चाक-ए-गिरेबाँ चाक-ए-दिल से मिलने वाला है

मगर ये हादसे भी बेश ओ कम होते ही रहते हैं

(823) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Salib O Dar Ke Qisse Raqam Hote Hi Rahte Hain In Hindi By Famous Poet Aziz Hamid Madni. Salib O Dar Ke Qisse Raqam Hote Hi Rahte Hain is written by Aziz Hamid Madni. Complete Poem Salib O Dar Ke Qisse Raqam Hote Hi Rahte Hain in Hindi by Aziz Hamid Madni. Download free Salib O Dar Ke Qisse Raqam Hote Hi Rahte Hain Poem for Youth in PDF. Salib O Dar Ke Qisse Raqam Hote Hi Rahte Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Salib O Dar Ke Qisse Raqam Hote Hi Rahte Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.