जी है बहुत उदास तबीअत हज़ीं बहुत

जी है बहुत उदास तबीअत हज़ीं बहुत

साक़ी को प्याला-ए-मय-ए-आतिशीं बहुत

दो गज़ ज़मीं फ़रेब-ए-वतन के लिए मिली

वैसे तो आसमाँ भी बहुत हैं ज़मीं बहुत

ऐसी भी इस हवा में है इक काफ़िरी की रौ

बुझ बुझ गए हैं शोला-ए-ईमान-ओ-दीं बहुत

बे-बाकियों में फ़र्द बहुत थी वो चश्म-ए-नाज़

दिल की हरीफ़ हो के उठी शर्मगीं बहुत

पैकार-ए-ख़ैर-ओ-शर से गुज़र आई ज़िंदगी

तेरी वफ़ा का दौर था अहद-आफ़रीं बहुत

फ़रियाद थी चकीदा-ए-ख़ून-ए-गुलू तमाम

नग़्मा भी हम-सफ़ीर था कार-ए-हज़ीं बहुत

ऐ दिल तुझी पे ख़त्म नहीं दास्तान-ए-इश्क़

अफ़्साना-ख़्वाँ मिले मिज़ा ओ आस्तीं बहुत

ऐसी हवा में घर से निकलने की जा न थी

वर्ना तमाम बात का आता यक़ीं बहुत

ऐ इंक़लाब-ए-रंग तबीअत सँभालना

हम भी उठे हैं बज़्म से अब के हज़ीं बहुत

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