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दिलों की उक़्दा-कुशाई का वक़्त है कि नहीं - अज़ीज़ हामिद मदनी कविता - Darsaal

दिलों की उक़्दा-कुशाई का वक़्त है कि नहीं

दिलों की उक़्दा-कुशाई का वक़्त है कि नहीं

ये आदमी की ख़ुदाई का वक़्त है कि नहीं

कहो सितारा-शनासो फ़लक का हाल कहो

रुख़ों से पर्दा-कुशाई का वक़्त है कि नहीं

हवा की नर्म-रवी से जवाँ हुआ है कोई

फ़रेब-ए-तंग-क़बाई का वक़्त है कि नहीं

ख़लल-पज़ीर हुआ रब्त-ए-मेहर-ओ-माह में वक़्त

बता ये तुझ से जुदाई का वक़्त है कि नहीं

अलग सियासत-ए-दरबाँ से दिल में है इक बात

ये वक़्त मेरी रसाई का वक़्त है कि नहीं

दिलों को मरकज़-ए-असरार कर गई जो निगह

उसी निगह की गदाई का वक़्त है कि नहीं

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