मैं एक बोरी में लाया हूँ भर के मूँग-फली
किसी के साथ दिसम्बर की रात काटनी है
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केबल पे एक शेल्फ़ से जल्दी में सीख कर
ऐसी ख़्वाहिश को समझता हूँ मैं बिल्कुल नेचुरल
मोअर्रिख़ लिख न दें सुक़रात मुझ को
कुछ इस लिए भी उसे टूट कर नहीं चाहा
वो तीस साल से है फ़क़त बीस साल की
वो हसब-ए-शहर कर लेता है मस्लक में भी तब्दीली
उमीद
ऐसे बंदों को जानता हूँ मैं
दस बारा ग़ज़लियात जो रखता है जेब में
दे रहे हैं इस लिए जंगल में धरना जानवर
कितनी मज़ाहिया है ये बोतल के जिन की बात