Love Poetry of Aziz Bano Darab Wafa
नाम | अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा |
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अंग्रेज़ी नाम | Aziz Bano Darab Wafa |
जन्म की तारीख | 1926 |
मौत की तिथि | 2005 |
जन्म स्थान | Lucknow |
ज़िंदगी के सारे मौसम आ के रुख़्सत हो गए
ज़िंदगी भर मैं खुली छत पे खड़ी भीगा की
वफ़ा के नाम पर पैरा किए कच्चे घड़े ले कर
उस की हर बात समझ कर भी मैं अंजान रही
मुझे चखते ही खो बैठा वो जन्नत अपने ख़्वाबों की
मेरे अंदर एक दस्तक सी कहीं होती रही
कोई मौसम मेरी उम्मीदों को रास आया नहीं
हम ने सारा जीवन बाँटी प्यार की दौलत लोगों में
हम ऐसे सूरमा हैं लड़ के जब हालात से पलटे
गए मौसम में मैं ने क्यूँ न काटी फ़स्ल ख़्वाबों की
फ़साना-दर-फ़साना फिर रही है ज़िंदगी जब से
इक वही खोल सका सातवाँ दर मुझ पे मगर
ज़िंदगी के सारे मौसम आ के रुख़्सत हो गए
ज़रा सी देर में वो जाने क्या से क्या कर दे
ज़रा मुश्किल से समझेंगे हमारे तर्जुमाँ हम को
ये हौसला भी किसी रोज़ कर के देखूँगी
वो ये कह कह के जलाता था हमेशा मुझ को
वो इक नज़र से मुझे बे-असास कर देगा
तू आया तो द्वार भिड़े थे दीप बुझा था आँगन का
थकन से चूर हूँ लेकिन रवाँ-दवाँ हूँ मैं
टटोलता हुआ कुछ जिस्म ओ जान तक पहुँचा
रूठ जाएगा तो मुझ से और क्या ले जाएगा
पड़ा है ज़िंदगी के इस सफ़र से साबिक़ा अपना
निकलना ख़ुद से मुमकिन है न मुमकिन वापसी मेरी
मिरे मिज़ाज को सूरज से जोड़ता क्यूँ है
मेरे अंदर एक दस्तक सी कहीं होती रही
लिया है किस क़दर सख़्ती से अपना इम्तिहाँ हम ने
किस क़दर कम-असास हैं कुछ लोग
ख़ुद में उतरूँगी तो मैं भी लापता हो जाऊँगी
कभी गोकुल कभी राधा कभी मोहन बन के