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फूँक देंगे मिरे अंदर के उजाले मुझ को - अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा कविता - Darsaal

फूँक देंगे मिरे अंदर के उजाले मुझ को

फूँक देंगे मिरे अंदर के उजाले मुझ को

काश दुश्मन मिरा क़िंदील बना ले मुझ को

एक साया हूँ मैं हालात की दीवार में क़ैद

कोई सूरज की किरन आ के निकाले मुझ को

अपनी हस्ती का कुछ एहसास तो हो जाए मुझे

और नहीं कुछ तो कोई मार ही डाले मुझ को

मैं समुंदर हूँ कहीं डूब न जाऊँ ख़ुद में

अब कोई मौज किनारे पे उछाले मुझ को

तिश्नगी मेरी मुसल्लम है मगर जाने क्यूँ

लोग दे देते हैं टूटे हुए प्याले मुझ को

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