न जाने कब से बराबर मिरी तलाश में है
न जाने कब से बराबर मिरी तलाश में है
ये कौन ख़ुद मिरे अंदर मिरी तलाश में है
वो मुझ में और किसी को तलाश करता है
जो मेरे पास भी रह कर मिरी तलाश में है
गिला था जिस को कि मैं उस का आईना न बनी
अब अपने साए से थक कर मिरी तलाश में है
उबल पड़ूँ न मैं इक दिन कहीं किनारों से
ज़मीन हूँ मैं समुंदर मिरी तलाश में है
(784) Peoples Rate This