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लिया है किस क़दर सख़्ती से अपना इम्तिहाँ हम ने - अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा कविता - Darsaal

लिया है किस क़दर सख़्ती से अपना इम्तिहाँ हम ने

लिया है किस क़दर सख़्ती से अपना इम्तिहाँ हम ने

कि इक तलवार रख दी ज़िंदगी के दरमियाँ हम ने

हमें तो उम्र भर रहना था ख़्वाबों के जज़ीरों में

किनारों पर पहुँच कर फूँक डालीं कश्तियाँ हम ने

हमारे जिस्म ही क्या साए तक जिस्मों के ज़ख़्मी हैं

दिलों में घोंप लीं हैं रौशनी की बर्छियाँ हम ने

हमें दी जाएगी फाँसी हमारे अपने जिस्मों में

उजाड़ी हैं तमन्नाओं की लाखों बस्तियाँ हम ने

वफ़ा के नाम पर पैरा किए कच्चे घड़े ले कर

डुबोया ज़िंदगी को दास्ताँ-दर-दास्ताँ हम ने

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