Ghazals of Aziz Bano Darab Wafa
नाम | अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Aziz Bano Darab Wafa |
जन्म की तारीख | 1926 |
मौत की तिथि | 2005 |
जन्म स्थान | Lucknow |
ज़िंदगी के सारे मौसम आ के रुख़्सत हो गए
ज़रा सी देर में वो जाने क्या से क्या कर दे
ज़रा मुश्किल से समझेंगे हमारे तर्जुमाँ हम को
ये हौसला भी किसी रोज़ कर के देखूँगी
वो ये कह कह के जलाता था हमेशा मुझ को
वो इक नज़र से मुझे बे-असास कर देगा
तू आया तो द्वार भिड़े थे दीप बुझा था आँगन का
थकन से चूर हूँ लेकिन रवाँ-दवाँ हूँ मैं
टटोलता हुआ कुछ जिस्म ओ जान तक पहुँचा
रूठ जाएगा तो मुझ से और क्या ले जाएगा
फूँक देंगे मिरे अंदर के उजाले मुझ को
पड़ा है ज़िंदगी के इस सफ़र से साबिक़ा अपना
निकलना ख़ुद से मुमकिन है न मुमकिन वापसी मेरी
न याद आया न भूला न सानेहा मुझ को
न जाने कब से बराबर मिरी तलाश में है
मुझे कहाँ मिरे अंदर से वो निकालेगा
मिरे मिज़ाज को सूरज से जोड़ता क्यूँ है
मेरे अंदर एक दस्तक सी कहीं होती रही
मेरा भी हर अंग था बहरा उस का जिस्म भी गूँगा था
मैं उस की बात के लहजे का ए'तिबार करूँ
लिया है किस क़दर सख़्ती से अपना इम्तिहाँ हम ने
लहू से उठ के घटाओं के दिल बरसते हैं
किस क़दर कम-असास हैं कुछ लोग
ख़ुद में उतरूँगी तो मैं भी लापता हो जाऊँगी
खोल रहे हैं मूँद रहे हैं यादों के दरवाज़े लोग
कभी गोकुल कभी राधा कभी मोहन बन के
हम कोई नादान नहीं कि बच्चों की सी बात करें
हटा के मेज़ से इक रोज़ आईना मैं ने
एक दिए ने सदियों क्या क्या देखा है बतलाए कौन
अपनी बीती हुई रंगीन जवानी देगा