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हम उस को भूल बैठे हैं अँधेरे हम पे तारी हैं - अज़ीज़ अन्सारी कविता - Darsaal

हम उस को भूल बैठे हैं अँधेरे हम पे तारी हैं

हम उस को भूल बैठे हैं अँधेरे हम पे तारी हैं

मगर उस के करम के सिलसिले दुनिया पे जारी हैं

करें ये सैर कारों में कि उड़ लें ये जहाज़ों में

फ़रिश्ता मौत का कहता है ये मेरी सवारी हैं

न उन के क़ौल ही सच्चे न उन के तोल ही सच्चे

ये कैसे देश के ताजिर हैं कैसे ब्योपारी हैं

हमारी मुफ़्लिसी आवारगी पे तुम को हैरत क्यूँ

हमारे पास जो कुछ है वो सौग़ातें तुम्हारी हैं

नसब के ख़ून के रिश्ते हों या पीने पिलाने के

कलाई पर बंधे धागे के रिश्ते सब पे भारी हैं

ये अपनी बेबसी है या कि अपनी बे-हिसी यारो

है अपना हाथ उन के सामने जो ख़ुद भिकारी हैं

हमें भी देख ले दुनिया की रौनक़ देखने वाले

तिरी आँखों में जो आँखें हैं वो आँखें हमारी हैं

अज़ीज़-ए-ना-तवाँ के सामने कोहसार-ए-ग़म हल्का

मगर एहसान के तिनके अज़ल से उन पे भारी हैं

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