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अच्छाई से नाता जोड़ वर्ना फिर पछताएगा - अज़ीज़ अन्सारी कविता - Darsaal

अच्छाई से नाता जोड़ वर्ना फिर पछताएगा

अच्छाई से नाता जोड़ वर्ना फिर पछताएगा

उल्टे-सीधे धंदे छोड़ वर्ना फिर पछताएगा

मुस्तक़बिल की तय्यारी करने में है हुश्यारी

वक़्त से आगे तू भी दौड़ वर्ना फिर पछताएगा

दीवारें जो हाइल हैं तेरी हार पे माइल हैं

दीवारों से सर मत फोड़ वर्ना फिर पछताएगा

दौलत देने से इज़्ज़त बचती है तो कर हिम्मत

सामने रख दे एक करोड़ वर्ना फिर पछताएगा

अश्क-ए-नदामत से दिल का भीगा दामन है अच्छा

उस दामन को तो न निचोड़ वर्ना फिर पछताएगा

झूटी-सच्ची कह कर जो तुझ को रुस्वा करता हो

तू भी उस का भांडा फोड़ वर्ना फिर पछताएगा

शाख़ पे रह के पक जाएँ अपने आप ही थक जाएँ

तू ये कच्चे फल मत तोड़ वर्ना फिर पछताएगा

शैतानी पंजा क्या चीज़ एक मुजाहिद तू है 'अज़ीज़'

शैतानी पंजे को मरोड़ वर्ना फिर पछताएगा

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