मोहतरम कह के मुझे उस ने पशेमान किया
कोई पहलू न मिला जब मिरी रुस्वाई का
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Gulzar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1036) Peoples Rate This
ज़ीस्त उनवान तेरे होने का
मिलते जुलते हैं यहाँ लोग ज़रूरत के लिए
किसी बुज़दिल की सूरत घर से ये बाहर निकलता है
चारासाज़ो मिरा इलाज करो
सिलसिला यूँ भी रवा रक्खा शनासाई का
दाग़ चेहरे का यूँही छोड़ दिया जाता है
जो मेरा झूट है अक्सर मिरे अंदर निकलता है
पढ़िए सबक़ यही है वफ़ा की किताब का
न जाने शाम ने क्या कह दिया सवेरे से
नींद पलकों पे यूँ रखी सी है
मुझ को हर सम्त ले के जाता है