चारासाज़ो मिरा इलाज करो
आज कुछ दर्द में कमी सी है
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मिलते जुलते हैं यहाँ लोग ज़रूरत के लिए
मोहतरम कह के मुझे उस ने पशेमान किया
दाग़ चेहरे का यूँही छोड़ दिया जाता है
नींद पलकों पे यूँ रखी सी है
ख़ूबसूरत है सिर्फ़ बाहर से
सिलसिला यूँ भी रवा रक्खा शनासाई का
ज़ीस्त उनवान तेरे होने का
कोई किरदार अदा करता है क़ीमत इस की
पढ़िए सबक़ यही है वफ़ा की किताब का
न जाने शाम ने क्या कह दिया सवेरे से
जो मेरा झूट है अक्सर मिरे अंदर निकलता है