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गिर्या-ए-शब की शहादत के लिए जागते हैं - अज़हर नक़वी कविता - Darsaal

गिर्या-ए-शब की शहादत के लिए जागते हैं

गिर्या-ए-शब की शहादत के लिए जागते हैं

ये सितारे कोई साअ'त के लिए जागते हैं

ख़ौफ़ ऐसा है कि हम बंद मकानों में भी

सोने वालों की हिफ़ाज़त के लिए जागते हैं

उम्र गुज़री है तिरी सज्दा-वरी में लेकिन

आज हम अपनी इबादत के लिए जागते हैं

पहले हम करते हैं तस्वीर में उर्यां तिरा ख़्वाब

और फिर उस की हिफ़ाज़त के लिए जागते हैं

लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ पढ़ा करते हैं तेरी सूरत

रात-भर तेरी तिलावत के लिए जागते हैं

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