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देखिए चलता है पैमाना किधर से पहले - अज़हर लखनवी कविता - Darsaal

देखिए चलता है पैमाना किधर से पहले

देखिए चलता है पैमाना किधर से पहले

बज़्म में शोर है हर सम्त इधर से पहले

ग़म की तारीक घटाओं से परेशान न हो

तीरगी होती है आसार-ए-सहर से पहले

आप जिस राहगुज़र से हैं गुज़रने वाले

हम गुज़र आए हैं उस राहगुज़र से पहले

मुझ से देखे नहीं जाते हैं किसी के आँसू

पोंछ लो अश्क ज़रा दीदा-ए-तर से पहले

हुस्न वाले तो बहुत फिरते हैं हर सू लेकिन

तुम सा कोई नहीं गुज़रा है नज़र से पहले

एक मंज़िल है मगर राह कई हैं 'अज़हर'

सोचना ये है कि जाओगे किधर से पहले

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