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दिल की गली में चाँद निकलता रहता है - अज़हर इक़बाल कविता - Darsaal

दिल की गली में चाँद निकलता रहता है

दिल की गली में चाँद निकलता रहता है

एक दिया उम्मीद का जलता रहता है

जैसे जैसे यादों कि लौ बढ़ती है

वैसे वैसे जिस्म पिघलता रहता है

सरगोशी को कान तरसते रहते हैं

सन्नाटा आवाज़ में ढलता रहता है

मंज़र मंज़र जी लो जितना जी पाओ

मौसम पल पल रंग बदलता रहता है

राख हुई जाती है सारी हरियाली

आँखों में जंगल सा जलता रहता है

तुम जो गए तो भूल गए सारी बातें

वैसे दिल में क्या क्या चलता रहता है

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