Love Poetry of Azhar Inayati
नाम | अज़हर इनायती |
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अंग्रेज़ी नाम | Azhar Inayati |
जन्म की तारीख | 1946 |
ये भी रहा है कूचा-ए-जानाँ में अपना रंग
वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना
वो जिस के सेहन में कोई गुलाब खिल न सका
मैं जिसे ढूँडने निकला था उसे पा न सका
कभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैं
हर एक रात को महताब देखने के लिए
चौराहों का तो हुस्न बढ़ा शहर के मगर
वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना
उस को आदाब बिछड़ने के सिखाता हुआ मैं
उदास उदास तबीअ'त जो थी बहलने लगी
तिरे तक़ाज़ों पे चेहरे बदल रहा हूँ मैं
तमाम शख़्सियत उस की हसीं नज़र आई
शुरू-ए-इश्क़ में लोगों ने इतनी शिद्दत की
रंगतें मासूम चेहरों की बुझा दी जाएँगी
क़यामत आएगी माना ये हादिसा होगा
नज़र की ज़द में सर कोई नहीं है
क्या क्या नवाह-ए-चश्म की रानाइयाँ गईं
कुछ आरज़ी उजाले बचाए हुए हैं लोग
ख़त उस के अपने हाथ का आता नहीं कोई
कभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैं
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
इस हादसे को देख के आँखों में दर्द है
इस बुलंदी पे कहाँ थे पहले
इस बार उन से मिल के जुदा हम जो हो गए
हर एक रात को महताब देखने के लिए
घर तो हमारा शो'लों के नर्ग़े में आ गया
ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था
दियों से आग जो लगती रही मकानों को
चलते चलते साल कितने हो गए
बनाए ज़ेहन परिंदों की ये क़तार मिरा