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इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा - अज़हर इनायती कविता - Darsaal

इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा

इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा

ये आख़िरी दरख़्त बहुत याद आएगा

बिछड़े हुओं की याद तो आएगी जीते-जी

मौसम रफ़ाक़तों का पलट कर न आएगा

तख़्लीक़ और शिकस्त का देखेंगे लोग फ़न

दरिया हबाब सत्ह पे जब तक बनाएगा

हर हर क़दम पे आइना-बरदार है नज़र

बे-चेहरगी को कोई कहाँ तक छुपाएगा

मेरी सदा का क़द है फ़ज़ा से भी कुछ बुलंद

ज़ालिम फ़सील-ए-शहर कहाँ तक उठाएगा

तारीफ़ कर रहा है अभी तक जो आदमी

उट्ठा तो मेरे ऐब हज़ारों गिनाएगा

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