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फ़न उड़ानों का जब ईजाद किया था मैं ने - अज़हर इनायती कविता - Darsaal

फ़न उड़ानों का जब ईजाद किया था मैं ने

फ़न उड़ानों का जब ईजाद किया था मैं ने

कुछ परिंदों को भी आज़ाद किया था मैं ने

अब कोई शहर उजड़ता है तो ये लगता है

जैसे इस शहर को आबाद किया था मैं ने

शोर इतना हुआ आँगन में कि फिर भूल गया

आज बरसों में उसे याद किया था मैं ने

आप अय्याश नहीं आप बुरा मान गए

ज़िक्र-ए-सर्माया-ए-अज्दाद किया था मैं ने

आज-कल कुछ भी नहीं मान रहा है 'अज़हर'

अपने क़ाबू में जो हम-ज़ाद किया था मैं ने

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