ये नहीं देखते कितनी है रियाज़त किस की
लोग आसान समझ लेते हैं आसानी को
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उस से हम पूछ थोड़ी सकते हैं
बहुत से साँप थे इस ग़ार के दहाने पर
महसूस कर लिया था भँवर की थकान को
गिरते पेड़ों की ज़द में हैं हम लोग
कुछ नहीं दे रहा सुझाई हमें
कोशिशें कर के दिल बुरा किया था
कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए
वो दस्तियाब हमें इस लिए नहीं होता
उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं
दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था
रात की आग़ोश से मानूस इतने हो गए
हाए वो भीगा रेशमी पैकर