ये ख़मोशी मिरी ख़मोशी है
इस का मतलब मुकालिमा लिया जाए
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Gulzar
Javed Akhtar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1133) Peoples Rate This
ये जो रहते हैं बहुत मौज में शब भर हम लोग
गिरते पेड़ों की ज़द में हैं हम लोग
बदल के देख चुकी है रेआया साहिब-ए-तख़्त
भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
रात की आग़ोश से मानूस इतने हो गए
वो दस्तियाब हमें इस लिए नहीं होता
एक होने की क़स्में खाई जाएँ
गीले बालों को सँभाल और निकल जंगल से
तेरी शर्तों पे ही करना है अगर तुझ को क़ुबूल
मेरी नुमू है तेरे तग़ाफ़ुल से वाबस्ता
उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं
कोशिशें कर के दिल बुरा किया था