ये जो रहते हैं बहुत मौज में शब भर हम लोग
सुब्ह होते ही किनारे पे पड़े होते हैं
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ऐसी ग़ुर्बत को ख़ुदा ग़ारत करे
कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए
ये ए'तिमाद भी मेरा दिया हुआ है तुम्हें
वैसे तो ईमान है मेरा उन बाँहों की गुंजाइश पर
ये लोग जा के कटी बोगियों में बैठ गए
प्यास की पैदाइश तो कल का क़िस्सा है
महसूस कर लिया था भँवर की थकान को
उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं
भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
कमी है कौन सी घर में दिखाने लग गए हैं
एक ही वक़्त में प्यासे भी हैं सैराब भी हैं
गीले बालों को सँभाल और निकल जंगल से