ये ए'तिमाद भी मेरा दिया हुआ है तुम्हें
जो मेरे मशवरे बे-कार जाने लग गए हैं
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भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
एक होने की क़स्में खाई जाएँ
कुछ नहीं दे रहा सुझाई हमें
गिरते पेड़ों की ज़द में हैं हम लोग
ऐसी ग़ुर्बत को ख़ुदा ग़ारत करे
ये ख़मोशी मिरी ख़मोशी है
धूप में साया बने तन्हा खड़े होते हैं
तेज़ आँधी में ये भी काफ़ी है
जाते हुए नहीं रहा फिर भी हमारे ध्यान में
उसे कहो जो बुलाता है गहरे पानी में
हँसने-हँसाने पढ़ने-पढ़ाने की उम्र है
अच्छे-ख़ासे लोगों पर भी वक़्त इक ऐसा आ जाता है