वो दस्तियाब हमें इस लिए नहीं होता
हम इस्तिफ़ादा नहीं देख-भाल करते हैं
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प्यास की पैदाइश तो कल का क़िस्सा है
दोश देते रहे बे-कार ही तुग़्यानी को
आँख खुलते ही जबीं चूमने आ जाते हैं
ऐसी ग़ुर्बत को ख़ुदा ग़ारत करे
वस्ल के एक ही झोंके में
ये लोग जा के कटी बोगियों में बैठ गए
कोई सिलसिला नहीं जावेदाँ तिरे साथ भी तिरे बा'द भी
अच्छे-ख़ासे लोगों पर भी वक़्त इक ऐसा आ जाता है
गिरते पेड़ों की ज़द में हैं हम लोग
ये नहीं देखते कितनी है रियाज़त किस की
भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है