वस्ल के एक ही झोंके में
कान से बाले उतर गए
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कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए
ये जो रहते हैं बहुत मौज में शब भर हम लोग
बहुत ग़नीमत हैं हम से मिलने कभी कभी के ये आने वाले
मैं जानता हूँ मुझे मुझ से माँगने वाले
गीले बालों को सँभाल और निकल जंगल से
हाए वो भीगा रेशमी पैकर
दोश देते रहे बे-कार ही तुग़्यानी को
महसूस कर लिया था भँवर की थकान को
बहुत से साँप थे इस ग़ार के दहाने पर
ये लोग जा के कटी बोगियों में बैठ गए
अच्छे-ख़ासे लोगों पर भी वक़्त इक ऐसा आ जाता है
डरे हुए हैं सभी लोग अब्र छाने से