तेज़ आँधी में ये भी काफ़ी है
पेड़ तस्वीर में बचा लिया जाए
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दोश देते रहे बे-कार ही तुग़्यानी को
दलील उस के दरीचे की पेश की मैं ने
कोई भी शक्ल मिरे दिल में उतर सकती है
ख़तों को खोलती दीमक का शुक्रिया वर्ना
उसे कहो जो बुलाता है गहरे पानी में
हाए वो भीगा रेशमी पैकर
ये जो रहते हैं बहुत मौज में शब भर हम लोग
एक ही वक़्त में प्यासे भी हैं सैराब भी हैं
वस्ल के एक ही झोंके में
ख़ुद पर हराम समझा समर के हुसूल को
अच्छे-ख़ासे लोगों पर भी वक़्त इक ऐसा आ जाता है