कुछ नहीं दे रहा सुझाई हमें
इस क़दर रौशनी का क्या कीजे
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ख़तों को खोलती दीमक का शुक्रिया वर्ना
मेरी नुमू है तेरे तग़ाफ़ुल से वाबस्ता
कोशिशें कर के दिल बुरा किया था
दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था
कमी है कौन सी घर में दिखाने लग गए हैं
ये जो रहते हैं बहुत मौज में शब भर हम लोग
हँसने-हँसाने पढ़ने-पढ़ाने की उम्र है
वो दस्तियाब हमें इस लिए नहीं होता
भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
हाए वो भीगा रेशमी पैकर
हमारे ज़ाहिरी अहवाल पर न जा हम लोग
वैसे तो ईमान है मेरा उन बाँहों की गुंजाइश पर