किसी बदन की सयाहत निढाल करती है
किसी के हाथ का तकिया थकान खींचता है
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हँसने-हँसाने पढ़ने-पढ़ाने की उम्र है
भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
कोई सिलसिला नहीं जावेदाँ तिरे साथ भी तिरे बा'द भी
ये ख़मोशी मिरी ख़मोशी है
ख़ुद पर हराम समझा समर के हुसूल को
दलील उस के दरीचे की पेश की मैं ने
दोश देते रहे बे-कार ही तुग़्यानी को
ठहरना भी मिरा जाना शुमार होने लगा
कोशिशें कर के दिल बुरा किया था
तेज़ आँधी में ये भी काफ़ी है
तिरे ब'अद कोई भी ग़म असर नहीं कर सका