हमारे ज़ाहिरी अहवाल पर न जा हम लोग
क़याम अपने ख़द-ओ-ख़ाल में नहीं करते
Wasi Shah
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भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
उसे कहो जो बुलाता है गहरे पानी में
किसी बदन की सयाहत निढाल करती है
तेज़ आँधी में ये भी काफ़ी है
महसूस कर लिया था भँवर की थकान को
वैसे तो ईमान है मेरा उन बाँहों की गुंजाइश पर
बाग़ से झूले उतर गए
हम अपनी नेकी समझते तो हैं तुझे लेकिन
उस से हम पूछ थोड़ी सकते हैं
हाए वो भीगा रेशमी पैकर
ये ख़मोशी मिरी ख़मोशी है