हाए वो भीगा रेशमी पैकर
तौलिया खुरदुरा लगे जिस को
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ये लोग जा के कटी बोगियों में बैठ गए
मंज़र-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ है दम-ए-रुख़्सत-ए-ख़्वाब
वस्ल के एक ही झोंके में
बता रहा है झटकना तिरी कलाई का
ख़तों को खोलती दीमक का शुक्रिया वर्ना
कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए
तेरी शर्तों पे ही करना है अगर तुझ को क़ुबूल
गिरते पेड़ों की ज़द में हैं हम लोग
बहुत ग़नीमत हैं हम से मिलने कभी कभी के ये आने वाले
उस से हम पूछ थोड़ी सकते हैं
इज़ाला हो गया ताख़ीर से निकलने का
महसूस कर लिया था भँवर की थकान को