गिरते पेड़ों की ज़द में हैं हम लोग
क्या ख़बर रास्ता खुले कब तक
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भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
बाग़ से झूले उतर गए
कोई सिलसिला नहीं जावेदाँ तिरे साथ भी तिरे बा'द भी
हमारे ज़ाहिरी अहवाल पर न जा हम लोग
ये कच्चे सेब चबाने में इतने सहल नहीं
ठहरना भी मिरा जाना शुमार होने लगा
कमी है कौन सी घर में दिखाने लग गए हैं
डरे हुए हैं सभी लोग अब्र छाने से
आँख खुलते ही जबीं चूमने आ जाते हैं
तेज़ आँधी में ये भी काफ़ी है