एक होने की क़स्में खाई जाएँ
और आख़िर में कुछ दिया लिया जाए
Javed Akhtar
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Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
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इज़ाला हो गया ताख़ीर से निकलने का
डरे हुए हैं सभी लोग अब्र छाने से
महसूस कर लिया था भँवर की थकान को
मेरी नुमू है तेरे तग़ाफ़ुल से वाबस्ता
उसे कहो जो बुलाता है गहरे पानी में
ये कच्चे सेब चबाने में इतने सहल नहीं
हँसने-हँसाने पढ़ने-पढ़ाने की उम्र है
किसी बदन की सयाहत निढाल करती है
दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था
भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
ये जो रहते हैं बहुत मौज में शब भर हम लोग
उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं