एक ही वक़्त में प्यासे भी हैं सैराब भी हैं
हम जो सहराओं की मिट्टी के घड़े होते हैं
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कोशिशें कर के दिल बुरा किया था
वस्ल के एक ही झोंके में
बता रहा है झटकना तिरी कलाई का
ये कच्चे सेब चबाने में इतने सहल नहीं
ठहरना भी मिरा जाना शुमार होने लगा
कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए
प्यास की पैदाइश तो कल का क़िस्सा है
भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
वो दस्तियाब हमें इस लिए नहीं होता