बता रहा है झटकना तिरी कलाई का
ज़रा भी रंज नहीं है तुझे जुदाई का
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एक होने की क़स्में खाई जाएँ
प्यास की पैदाइश तो कल का क़िस्सा है
मैं जानता हूँ मुझे मुझ से माँगने वाले
वो दस्तियाब हमें इस लिए नहीं होता
भँवर से ये जो मुझे बादबान खींचता है
अच्छे-ख़ासे लोगों पर भी वक़्त इक ऐसा आ जाता है
मेरी नुमू है तेरे तग़ाफ़ुल से वाबस्ता
ये नहीं देखते कितनी है रियाज़त किस की
तेरी शर्तों पे ही करना है अगर तुझ को क़ुबूल
ख़तों को खोलती दीमक का शुक्रिया वर्ना
इज़ाला हो गया ताख़ीर से निकलने का
रात की आग़ोश से मानूस इतने हो गए