बदल के देख चुकी है रेआया साहिब-ए-तख़्त
जो सर क़लम नहीं करता ज़बान खींचता है
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Habib Jalib
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Gulzar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(868) Peoples Rate This
किसी बदन की सयाहत निढाल करती है
अच्छे-ख़ासे लोगों पर भी वक़्त इक ऐसा आ जाता है
उस से हम पूछ थोड़ी सकते हैं
ये कच्चे सेब चबाने में इतने सहल नहीं
कुछ नहीं दे रहा सुझाई हमें
मंज़र-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ है दम-ए-रुख़्सत-ए-ख़्वाब
गीले बालों को सँभाल और निकल जंगल से
बाग़ से झूले उतर गए
दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था
ठहरना भी मिरा जाना शुमार होने लगा
कोशिशें कर के दिल बुरा किया था
तेज़ आँधी में ये भी काफ़ी है