हम ने घर की सलामती के लिए
ख़ुद को घर से निकाल रक्खा है
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Gulzar
Allama Iqbal
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1495) Peoples Rate This
मैं उस का नाम ले बैठा था इक दिन
एक लम्हे को सही उस ने मुझे देखा तो है
बे-ख़्वाबी कब छुप सकती है काजल से भी
क्या तेरा क्या मेरा ख़्वाब
क़ज़ा का तीर था कोई कमान से निकल गया
जो ज़िंदगी की माँग सजाते रहे सदा
शब भर आँख में भीगा था
लोगो हम तो एक ही सूरत में हथियार उठाते हैं
समझ में आ तो सकती है सबा की गुफ़्तुगू भी
इस लिए मैं ने मुहाफ़िज़ नहीं रक्खे अपने
पत्ता हूँ आँधियों के मुक़ाबिल खड़ा हूँ मैं
कल परदेस में याद आएगी ध्यान में रख