कुछ अब के रस्म-ए-जहाँ के ख़िलाफ़ करना है

कुछ अब के रस्म-ए-जहाँ के ख़िलाफ़ करना है

शिकस्त दे के अदू को माफ़ करना है

हवा को ज़िद कि उड़ाएगी धूल हर सूरत

हमें ये धुन है कि आईना साफ़ करना है

वो बोलता है तो सब लोग ऐसे सुनते हैं

कि जैसे उस ने कोई इंकिशाफ़ करना है

मुझे पता है कि अपने बयान से उस ने

कहाँ कहाँ पे अभी इंहिराफ़ करना है

चराग़ ले के हथेली पे घूमना ऐसे

हवा-ए-तुंद को अपने ख़िलाफ़ करना है

वो जुर्म हम से जो सरज़द नहीं हुए 'अज़हर'

अभी तो उन का हमें ए'तिराफ़ करना है

(855) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kuchh Ab Ke Rasm-e-jahan Ke KHilaf Karna Hai In Hindi By Famous Poet Azhar Adeeb. Kuchh Ab Ke Rasm-e-jahan Ke KHilaf Karna Hai is written by Azhar Adeeb. Complete Poem Kuchh Ab Ke Rasm-e-jahan Ke KHilaf Karna Hai in Hindi by Azhar Adeeb. Download free Kuchh Ab Ke Rasm-e-jahan Ke KHilaf Karna Hai Poem for Youth in PDF. Kuchh Ab Ke Rasm-e-jahan Ke KHilaf Karna Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Kuchh Ab Ke Rasm-e-jahan Ke KHilaf Karna Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.