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इधर महसूस होती है कमी उस की - अज़हर अब्बास कविता - Darsaal

इधर महसूस होती है कमी उस की

इधर महसूस होती है कमी उस की

उधर मैं भूल जाता हूँ गली उस की

मैं दरिया हो भी जाऊँगा तो क्या होगा

मुझे मा'लूम है जब तिश्नगी उस की

वो जिस की रात-दिन तस्बीह करते हैं

कभी देखी नहीं तस्वीर भी उस की

जहाँ जाए हमें भी साथ ले जाए

कहीं बे-घर न कर दे बे-घरी उस की

वो अक्सर ख़ाली घर में आता जाता है

कि जैसे चीज़ कोई रह गई उस की

गुज़रते वक़्त की जब बात करता है

हमेशा बंद होती है घड़ी उस की

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