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इस से पहले कि घर के पर्दों से - आज़र अस्करी कविता - Darsaal

इस से पहले कि घर के पर्दों से

इस से पहले कि घर के पर्दों से

टेडीपतलून कोई सिल्वा लूँ

इस से पहले कि तुझ को दे कर दिल

तेरे कूचे में ख़ुद को पिटवा लूँ

इस से पहले कि तेरी फ़ुर्क़त में

ख़ुद-कशी की स्कीम अपना लूँ

इस से पहले कि इक तिरी ख़ातिर

नाम ग़ुंडों में अपना लिखवा लूँ

मैं तिरा शहर छोड़ जाऊँगा

इस से पहले कि वो उदू कम-बख़्त

तेरे घर जा के चुग़लियाँ खाए

इस से पहले कि दें रपट जा कर

तेरे मेरे शरीफ़ हम-साए

इस से पहले कि तेरी फ़रमाइश

मुझ से चोरी का जुर्म करवाए

इस से पहले कि अपना थानेदार

मुर्ग़ा थाने में मुझ को बनवाए

मैं तिरा शहर छोड़ जाऊँगा

तुझ को आगाह क्यूँ न कर दूँ मैं

अपने इस इंतिज़ाम से पहले

मशवरा भी तुझी से करना है

अपनी मर्ग-ए-हराम से पहले

कोई ऐसी ट्रेन बतला दे

जाए जो तेज़-गाम से पहले

आज के इस डिनर को भुगता कर

कल किसी वक़्त शाम से पहले

मैं तिरा शहर छोड़ जाऊँगा

दिल की गर्दन मरोड़ जाऊँगा

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