गुंग हैं सारी ज़मीनें आसमाँ हैरत-ज़दा
गुंग हैं सारी ज़मीनें आसमाँ हैरत-ज़दा
रफ़्तगाँ शश्दर सभी आइंदगाँ हैरत-ज़दा
चूस लेती है ज़मीं पानी जहाँ हों नफ़रतें
ख़ुश्क होती नहर पे मत हों किसाँ हैरत-ज़दा
कौन घर का है ये धोवन किस की है यख़-बस्तगी
बर्फ़ होती इस नदी का सब धुआँ हैरत-ज़दा
इस तहय्युर-ख़ेज़ शहर-ए-नूर की हर शय अजब
हर यक़ीं हैरत-ज़दा हर-इक गुमाँ हैरत-ज़दा
दाख़िले पर तख़्तियाँ हैं जिन पे कुंदा नाम हैं
कौन कैसे किस तरह और है कहाँ हैरत-ज़दा
संग-ए-मरमर से बना जंगल जहान-ए-आरज़ू
दफ़्तरी लहजा लिए मैं इक जवाँ हैरत-ज़दा
किस तरह का दर्स मुझ को दे रहा है आफ़्ताब
सहन-मकतब में कहीं है कहकशाँ हैरत-ज़दा
ज़िक्र था मलफ़ूफ़ कुन का आसमाँ की बात थी
सुन रहा था शहर सारा दास्ताँ हैरत-ज़दा
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