कुछ ऐसे फूल भी गुज़रे हैं मेरी नज़रों से
कुछ ऐसे फूल भी गुज़रे हैं मेरी नज़रों से
जो खिल के भी न समझ पाए ज़िंदगी क्या है
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जो खिल के भी न समझ पाए ज़िंदगी क्या है
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