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वो जो किसी का रूप धार कर आया था - आज़ाद गुलाटी कविता - Darsaal

वो जो किसी का रूप धार कर आया था

वो जो किसी का रूप धार कर आया था

मेरे अंदर बसने वाला साया था

वो दुख भी क्यूँ हम को तन्हा छोड़ गए

क्या क्या छोड़ के हम ने जिन्हें अपनाया था

ख़ुद तुम ने दरवाज़े बंद रक्खे वर्ना

मैं इक ताज़ा हवा का झोंका लाया था

मेरी इक आवाज़ से सारी टूट गई

वो दीवारें जिन पर तू इतराया था

वीराँ दिल में ग़म के प्रीत भटकते थे

मेरी चुप पर किसी सदा का साया था

इस में एक जनम-भर के दुख सिमटे थे

वो आँसू जो पलकों पर लहराया था

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