तेरे क़दमों की आहट को तरसा हूँ
तेरे क़दमों की आहट को तरसा हूँ
मैं भी तेरा भूला हुआ इक रस्ता हूँ
बीते लम्हों के झोंके जब आते हैं
पल दो पल को मैं फिर से खिल उठता हूँ
मुझ से मुज़्दा नई रुतों का पाओगे
यारो मैं इस पेड़ का अंतिम पत्ता हूँ
शायद तुम भी अब न मुझे पहचान सको
अब मैं ख़ुद को अपने जैसा लगता हूँ
आज के काले साए कल तक फैलेंगे
मेरे बच्चो मैं इस बात से डरता हूँ
तुम भी कैसे ढूँड सकोगे अब मुझ को
मैं ख़ुद अपने-आप से ओझल रहता हूँ
सायों की ख़्वाहिश ने मुझे जलाया है
अब मैं इन के नाम से तपने लगता हूँ
मुझ से मिल कर किस को यक़ीन अब आएगा
मैं भी तेरा टूटा हुआ इक रिश्ता हूँ
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