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मैं अपने आप से इक खेल करने वाला हूँ - आज़ाद गुलाटी कविता - Darsaal

मैं अपने आप से इक खेल करने वाला हूँ

मैं अपने आप से इक खेल करने वाला हूँ

सभी ये सोच रहे हैं कि मरने वाला हूँ

किसी की याद का महताब डूबने को है

मैं फिर से शब की तहों में उतरने वाला हूँ

समेट लो मुझे अपनी सदा के हल्क़ों में

मैं ख़ामुशी की हवा से बिखरने वाला हूँ

मुझे डुबोने का मंज़र हसीन था लेकिन

हसीन-तर है ये मंज़र उभरने वाला हूँ

हयात फ़र्ज़ थी या क़र्ज़ कटने वाली है

मैं जिस्म ओ जाँ की हदों से गुज़रने वाला हूँ

मैं साथ ले के चलूँगा तुम्हें ऐ हम-सफ़रो

मैं तुम से आगे हूँ लेकिन ठहरने वाला हूँ

सदा-ए-दश्त सही मेरी ज़िंदगी 'आज़ाद'

ख़ला-ए-दश्त को अपने से भरने वाला हूँ

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